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दिल से मानने और ज़बान से इकरार करने को ईमान कहते हैं ।
आमन्तु बिल्लाहि कमा हु - व बिअस्मा इही व सिफ़ातिही व विल्तु जमी - अ अह्कामिही ।
तर्जुमा- मैं ख़ुदा पर ईमान लाया जैसा कि वह अपने नामों से और सिर्फ़तों से भरपूर है और मैंने उसके तमाम हुक्मों को कुबूल किया ।
आमन्तु विल्लाहि व मलाइ कतिही व कुतुविही व रुसुलिही वल यौमिल आखिरि वल कुदरि खैरिही व शर्रिही मिनल्लाहि तआला वल बसि बदल मौत ०
तर्जुमा- मैं ईमान लाया अल्लाह पर और उसके फरिश्तों पर उसकी किताबों पर , उसके रसूलों पर और आखिरत के दिन पर और इस बात पर कि जो अंदाज़ा नेकी और बुराई का है अल्लाह तआला की तरफ से है और मरने के बाद सबके उठने पर ।
नमाज़ से पढ़ने से पहले Wazu Karna Farz है ।
वज़ू के बगैर Namaj सही नहीं होगी । के ।
अतवज़्ज़ - उ - लिरफइल हदसि अअजु बिल्लाहि मिनश्शैतानिरंजीम ० बिस्मिल्लाहिर्र हूमा - निर्रहीम ० बिस्मिल्लाहिल अज़ीमि वल् हम्दु लिल्लाहि अला दीनिल इस्लाम ०
तर्जुमा - में वुजू करता हूँ नापाकी दूर में करने के लिए । पनाह माँगता हूँ अल्लाह की , रद्द किये गये शैतान से शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो मेहरबान और रहीम है । शुरू करता हूँ मैं ख़ुदा - ए - बुजुर्ग के नाम से और दीने इस्लाम के लिए है ख़ुदा की तारीफ |
सबसे पहले नियत करके बिस्मिल्लाह कहे , फिर दोनों हाथों को पहुचों तक तीन बार धोए , तीन बार कुल्ली करे , तीन बार नाक में पानी डाले , फिर तीन बार पूरा मुँह धोए , दोनों हाथ कोहनियों तक धोए , चौथाई सर का मसह करे और आखिर में दोनों पाँव टखनो तक धोए , कहीं बाल बराबर सूखा न रहे ।
नमाज़ के लिए कुछ शर्तें हैं , जिनको पूरा किए बगैर नमाज़ नहीं हो सकती । कुछ शर्तों का namaz शुरू करने से पहले पूरा करना ज़रूरी है जैसे बुज़ू और कुछ शर्तों का namaz padhte hue ख्याल रखा जाता है ।
1. एक , बदन का पाक होना , यानी बदन पर किसी किस्म की गन्दगी न हो ।
2. दूसरे कपड़ों का पाक होना ,
3. तीसरे , जगह का पाक होना ,
4. चौथे , सतर का छिपाना । मर्दों का सतर नाफ़ से घुटने तक है और औरतों का सतर चेहरा , हाथ और टख्ने के नीचे के हिस्से को छोड़कर पूरा बदन है । जिस हिस्से का छिपाना फ़र्ज़ है , उसी को सतर कहते हैं ।
5. पाँचवे namaz ka waqt होना ,
6 छटे किव्ले की तरफ मुँह करना ,
7 सातवें , नियत | करना । namaz aur waqt नमाज़ अल्लाह तआला की इबादत करने का सबसे अच्छा तरीका है , जो हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुसलमानों को सिखाया ।
रात - दिन में पाँच नमाज़ पढ़नी फ़र्ज़ है :
पहली Namaj Fazar - जो सुबह के वक़्त सूरज निकलने से पहले पढ़ी जाती है ।
दूसरी Namaj Johar - जो दोपहर को सूरज ढलने के बाद पढ़ी जाती है ।
तीसरी Namaj Asar - जो सूरज छिपने से दो घण्टे पहले पढ़ी जाती है ।
चौथी Namaj Magrib जो शाम को सूरज छिपने के बाद पढ़ी जाती है ।
पाँचवी Namaj Isha - जो सूरज छिपने के दो घण्टे बाद पढ़ी जाती है ।
ज़रा अजान सुनिये मस्जिद से अज़ान की आवाज़ आ रही है । मुअज्ज़िन ( अज़ान देने वाला ) चिल्ला - चिल्लाकर ज़ोर - ज़ोर से कह रहा है :
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
अश् - हदु अल - ला इला - ह इल्लल्लाह अश् - हदु अल - ला इला - ह इल्लल्लाह
अश् - हदु अन - न मुहम्मदर रसूलुल्लाह अश् - हदु अन - न मुहम्मदर - रसूलुल्लाह
हय्य अलस्सलाह | हय् - य अलस्सलाह ।
हय् - य अ - लल फलाह । हय्य अ - लल फलाह ।
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
ला इला - ह इल्लल्लाह ।
तर्जुमा- अल्लाह बहुत बड़ा है । अल्लाह बहुत बड़ा है ।
अल्लाह बहुत बड़ा है । अल्लाह बहुत बड़ा है ।
मैं गवाही देता हूँ कि सिवाए अल्लाह के कोई इबादत के लायक नहीं ।
मैं गवाही देता हूँ कि सिवाए अल्लाह के कोई इबादत के लायक नहीं ।
मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं ।
मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं ।
आओ नमाज़ के की तरफ | आओ नमाज़ की तरफ
आओ भलाई की तरफ आओ भलाई की तरफ
अल्लाह सबसे बड़ा है । अल्लाह सबसे बड़ा है ।
कि सिवाए अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं ।
अस्सलातु खैरुम - मि - नन - नौम
तर्जुमा - namaz padhna नींद से बेहतर है ।
ये बोल सिर्फ सुबह की अज़ान ( फ़ज़ ) में "हय् - य अ - लल् फलाह" के बाद दो बार कहे जाते हैं । जब तुम अज़ान के बोल सुनो तो तुम भी वही लफ़्ज़ ज़बान से कहते रहो , जो Azan देने वाला कह रहा है । जब मोअज़्ज़िन कहे " हय् य अलस्सलाह " और " हय्य अ - लल फुलाह " तो तुम ये लफ़्ज़ न कहो बल्कि उनके जवाब में कहो "ला हौ - ल वला क़व्व - त इल्ला बिल्लाह"
अल्लाहुम् म रव् व हाज़िहिद् - द - व - तित् ताम्मति वस्सलातिल काइमति आति महम्म- द -निल वसी - ल - त वल फ़ज़ी - ल त वद - द - र ज - तर- रफी अन्त वव् असूह मकामम् महमूद निल् लज़ी व अत्तहू वर्जुक्ना शफ़ा - अ - त - हू यीमल कियामति इन् - न - क ला तुखिलफुल मीआद ०
तर्जुमा - ऐ अल्लाह इस बुलाने का मिल और namaj kaim की हुई के मुहम्मद को दे वसीला और रुत्वा और दर्जा बुलन्द और खड़ा कर उनको मकामे महमूद में जिसका तूने वादा किया और नसीब कर हमको शफ़ाअत उसकी दिन क्यामत के । बेशक , तू खिलाफ नहीं करता वादा ।
दूसरे मुसलमानों के साथ Masjid में इमाम के piche namaj padhne का अकेले namaz padhne ke muqabale सत्ताइस ( 27 ) गुना ज़्यादा सवाब मिलता है । इसलिए Jamat ke sath namaz पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए । अजान सुनते ही सब काम छोड़कर मस्जिद में आ जाना चाहिए ताकि आराम से वज़ू वगैरह कर सको । तमाम namazo में सिर्फ फर्ज़ इमाम के साथ पढ़े जाते हैं बाकी सुन्नतें और नफुल वगैरह तन्हा अदा किए जाते हैं ।
फ़र्ज़ पढ़ने के लिए जबnamazi imam के पीछे खड़े हो जाते हैं तो एक नमाज़ी ज़ोर जोर से तक्वीर पढ़ता है । (Namaz Ke pahle Padhi Jaane Wali Tabire)
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर |
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर ।
अश् - हदू अल् - ला इला - ह इल्लल्लाह ।
अश् - हदु अल्ला इला - ह इल्लल्लाह ।
अश् - हदु अन्न मुहम्मदर रसूलुल्लाह |
अश् - हदु अन - न मुहम्मद रसूलुल्लाह ।
हय्य अलस्सलाह । हय्य अलस्सलाह ।
हय् - य अ - लल फुलाह । हय् - य अ - लल फुलाह |
कुंद कामतिस्सलाह | कुंद कामतिस्सलाह
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर
ला इला - ह इल्लल्लाह ।
इमाम के पीछे सिर्फ सना पढ़कर खामोश खड़े हो जाओ । इमाम सूरह फ़ातिहा और क़ुरआन शरीफ़ की कोई सूरह पढ़ेगा और तुम खामोशी के साथ सुनोगे ।
Johar Ke Char Farz पढ़ते वक़्त इमाम भी आहिस्ता - आहिस्ता Surah Fatiha और कोई सूरह पढ़ेगा और तुम खामोश रहोगे , बाकी तमाम तस्वीरें इमाम के पीछे तुम भी पढ़ोगे और इमाम के पीछे तुम भी अत्तहिय्यात , दुरूद शरीफ और कोई दुआ पढ़ोगे और इमाम के साथ ही सलाम फेरोगे ।
अल्लाहु अकबर ( अल्लाह सबसे बड़ा है )
सुव्हा न कल्लाहम - म व वि - हम्दि क व तवा र कस्मु - क व तआला जद्दु - क वला इला - ह गैरु क ०
तर्जुमा - ऐ अल्लाह ! हम तेरी पाकी को मानते हैं और तेरी तारीफ बयान करते हैं और तेरा नाम बहुत बरकत वाला है और तेरी बुजुर्गी बुलंद है और तेरे सिवा कोई माबूद नहीं है ।
अऊज बिल्लाहि मिनश्शैतानिरंजीम ०
तर्जुमा- मैं अल्लाह की पनाह लेता हूँ - शैतान मरदूद से ।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ०
तर्जुमा - में अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ जो बड़ा मेहरबान और निहायत रहम वाला है ।
बिस्मिल्लाहिर्रह्मा निर्रहीम ०
अल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन ० अर्हमानिर्रहीम ० मालिकि यौमिद्दीन ० इय्या - क नवदु व इय्या - क नस्तईन ० इदिनस् सिरा तल मुस्तकीम ० सिरातल लज़ी न अन्अम् त अलैहिम गैरिल मगज़ूबि अलैहिम व लज़ ज़ाल्लीन ०
तर्जुमा - हर किस्म की तारीफें अल्लाह के लायक हैं , जो तमाम जहानों का पालने वाला है , बड़ा मेहरबान , निहायत रहम वाला है । जजा ( क्यामत ) के दिन का मालिक है । ( ऐ अल्लाह ! ) हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ ही से मदद मांगते हैं । हमको सीधे रास्ते पर चला , उन लोगों के रास्ते पर , जिन पर तूने इनाम फ़रमाया है , न उनके रास्ते पर , जिन पर तेरा गज़ब नाज़िल हुआ और न गुमराहों के रास्ते पर |
बिस्मिल्लाहिर्रह्मा निर्रहीम ०
इन्ना अअतैना कल् - कौसर ० फुसल्लि लि रब्बि क वन्हर ० इन् - न शानिअ क हुवल् अब्तर ०
तर्जुमा - ( ऐ नवी ) ! हमने तुमको कौसर अता की है । बस तुम अपने रब के लिए नमाज पढ़ो और कुरबानी करो । बेशक तुम्हारा दुश्मन ही वे नाम व निशान हो जाने वाला है ।
बिस्मिल्लाहिर्रहमा निर्रहीम ०
कुल हुवल्लाहु अन्ह ० अल्लाहुस्- स - मद ० लम् यलिद् व - लम् यू - लद ० व - लम् यकुल्लहू कुफ़ु - वन् अ - ह ०
तर्जुमा - कहां वह अल्लाह एक है , अल्लाह बे नियाज़ है । उसके कोई औलाद नहीं और न वह किसी की औलाद है । और उस जैसा कोई नहीं ।
बिस्मिल्लाहिर्रहमा निर्रहीम ०
कुल अऊजु विरब्बिल फ़ - लक ० मिन शर्रि मा ख - लक ० व मिन शर्रि गा सिकिन इज़ा व कव ० वमिन शर्रिन नफ्फासाति फ़िल उ - क़द ० व मिन शर्रि हासिदिन इज़ा ह - सद ०
तर्जुमा - ( ऐ नबी सल्ल ० ! दुआ में यों ) कहो कि में सुबह के रब की पनाह लेता हूँ , तमाम मखलूक के शर से और अंधेरे के शर से , जब अंधेरा फैल जाए और गिरहों पर दम करने वालियों के शर से और हसद करने वाले के शर से जब वह हसद करने पर आ जाए ।
बिस्मिल्लाहिर्रह्मा निर्रहीम ०
कुल अऊजु बिरब्विन्नास ० मलि किन्नास ० इलाहिन्नास ० मिन शर्रिल वस्वासिल खन्नास ० अल् लज़ी यु- वस विसु फी सुदू रिन्नास ० मिनल जिन्नति वन्नास ०
तर्जुमा - ( ऐ नबी ! दुआ में यों ) कहो कि में आदमियों के रब की पनाह लेता हूँ , आदमियों के बादशाह , आदमियों के माबूद की ( पनाह लेता हूँ ) उस वस्वसा डालने वाले , पीछे हट जाने वाले के शर से , जो लोगों के दिलों में वस्वसा डालता है जिन्नों में से हो , या आदमियों में से ।
और अल्लाह अकबर कहकर रूकू में जाए और सुब्हान रब्बियल अज़ीम ०
तर्जुमा - पाकी बयान करता हूँ अपने परवरदिगार बुजुर्ग की । तीन बार कहे और अगर जमाअत हो रही हो तो इमाम ,
वरना हर नमाज़ी समिअल्लाह लिमन हमिदहतर्जुमा - अल्लाह ने ( उसकी ) सुन ली , जिसमें उसकी तारीफ की ।
कह कर रुकूअ से सर उठाये और जमाअत होने पर मुक्तदी वरना हर नमाजी है । रब्बना ल - कल हम्द ऐ हमारे परवरदिगार ! तेरे ही वास्ते तारीफ भी कहे
और फिर ' अल्लाहु अकबर ' कहता हुआ सज्दे में जाए और सुब्हान रब्बियल अज़ीम' पाकी बयान करता हूँ , मैं अपने परवरदिगार बरतर की तीन बार कहे ।
फिर Allahu Akbar कहता हुआ सज्दे से उठ खड़ा हो,
फिर और दूसरी रक्अत बिना सना ( सुब्हान कल्लाहुम्म ) और अऊज से सिर्फ बिस्मिल्लाह से सूरह फ़ातिहा और दूसरी एक बड़ी आयत या तीन छोटी आयतें पढ़कर अदा करे , जैसा कि पहले गुज़र चुका है ,
फिर घुटने मोड़कर बाएं पाँव के पंजे और टखने पर बैठकर अत्तहिय्यात पढ़े ।
अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस - सला वातु वत्तय्यिवातु अस्सलामु अलै - क अय्युहन नविय्यु व रहमतुल्लाहि व वर कातुहू ० अस्सलामु अलैना व अला इवा - दिल्लाहिस् सालिहीन अशहद अल्ला इला - ह इल्लल्लाहु व अश्हदु अनू - न मुहम्मदन अबदुहू व रसूलुहू ।
तर्जुमा - तमाम ज़बान की इबादतें अल्लाह के लिए हैं और बदनी इबादतें और माली इबादतें भी सलामती हो तुम पर ऐ नवी और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें । हूँ कि अल्लाह के सलामती हो हम पर और अल्लाह के नेक बन्दों पर । मैं गवाही देता सिवा कोई माबूद नहीं और मैं गवाही देता कि हजरत मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) उसके बन्दे और उसके पैगम्बर हैं ।
अगर नमाज़ दो रक्अतों वाली हो , तो इसी से मिलाकर दुरूदे इब्राहीमी भी पढ़ ले । Daroode Ibrahim इस तरह है
अल्ला हुम् म सल्लि अला मुहम्मदिव् व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लै त अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन् - न - क हमीदुम् मजीद ० अल्लाहुम्म वारिक अला मुहम्मदिव् व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक्त अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन् - न - क हमीदुम्- मजीद ०
तर्जुमा - ऐ अल्लाह ! ( हमारे सरदार हज़रत ) मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) पर और हज़रत मुहम्मद ( सल्ल 0 ) की आल पर रहमत भेज , जिस तरह तूने रहमत भेजी हजरत इब्राहीम ( अलैहिस्सलाम ) पर और हज़रत इब्राहीम ( अलैहिस्सलाम ) की आल पर । बेशक तू तारीफ़ किया गया है , बुजुर्ग है । ऐ अल्लाह बरकत दे ( हमारे सरदार हज़रत ) मुहम्मद ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) को और हमारे सरदार हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आल को . जिस तरह तूने बरकत दी हजरत इब्राहीम ( अलैहिस्सलाम ) को और हजरत इब्राहीम । ( अलैहिस्सलाम ) की आल को बेशक तू तारीफ किया गया है , बुजुर्ग है ।
इस Darood Ibrahim के बाद नीचे की दुआ पढ़े :
अल्लाहुम्- म इन्नी ज़लम्तु नफ़सी जुलू - मन कसीरंव् - वला यगफिरुज़- जुनू - ब - इल्ला अन् त फ़ग़ - फिर ली मफिर तम मिन इन्दि क वर - हम्नी इन् - न - क अन् तल गुफ़ुरुर्रहीम ०
तर्जुमा- ऐ अल्लाह ! मैंने अपने नफ्स पर बहुत बहुत जुल्म किया है और तेरे सिवा कोई गुनाहों को बख़्श नहीं सकता , पस तू अपनी तरफ से खास बख्शिस से मुझको बख्श दे और मुझ पर रहम फ़रमा दे । बेशक तू ही बख्शने वाला , निहायत रहम वाला है ।
Darood Ibrahim के बाद की एक दुआ यह भी है ।
रब्विज् अल मुक़ीमस्सला ति वमिन तमुव जुर्रिय्यति रब्बना व तब्बल दुआ इ रब्बनरिफरली वलि वालिदय्य वलिल मुमिनी न यो म यक़ूमुल हिसाबु ०
यहाँ तक पढ़कर "अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाह" - तर्जुमा - सलाम हो तुम पर और अल्लाह की रहमत ।
दाएँ - बाएं मुँह करके कहे और Namaz Khatam करे और अगर चार रक्अत वाली नमाज़ हो तो Athiyyat Padhne Ke Baad अल्लाह अकबर कहता हुआ उठ खड़ा हो और तीसरी - चौथी रक्अत अदा करे ।
फिर दूसरे कायदे में बैठ कर अत्तहिय्यात , दुरूदे इब्राहीमी और दुआ - ए मासूरा पढ़कर "अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि"सीधी तरफ फिर बाईं तरफ कह कर Namaj Khatam करे ।
यह याद रहे कि चार रक्अत वाली या तीन रक्अत वाली Farz Namazo में पहली दो ही रक्तों में सूरह फ़ातिहा के बाद किसी दूसरी सूरह या बड़ी आयत का पढ़ना वाजिब है , तीसरी या चौथी रक्अत में सिर्फ Surah Fatiha ही पढ़ी जाएगी ।
अल्लाहुम्म अन्तस्सलामु व मिन्कस्सलामु व इलैक वर्जिउस्सलामु हरियना रब्वना विस्सलामि व अखिल ना दारस्सलामि तवा रक्त रब्बना व तआलय - त या जल जलालि वल् इक्रामि ०
तर्जुमा - ऐ अल्लाह ! तू सलामती वाला है और तुझी से सलामती है और तेरी तरफ सलामती रूजू करती है । ऐ हमारे परवरदिगार । हमको सलामती के साथ जिन्दा रख और सलामती के घर में हमको दाखिल कर । ऐ हमारे परवरदिगार ! तू बरकत वाला है और बुलन्द है , ऐ बड़ाई और बुजुर्गी वाले ।
फ़र्ज़ नमाज़ के बाद आयतल कुर्सी पढ़ने का बड़ा सवाब है , इसकी बड़ी फजीलत आई है । Aytal Kursi इस तरह है :
अल्लाहु ला इला - ह इल्ला हु - व - अल् हय्युल कय्यूम ला तअखजुहू सि - न - तुंव - वला नौम . लहू मा फिस्समावाति मा फिल अर्जि मन् ज़ल् लज़ी यश् फड़ अिन् दहू इल्ला विइनिही य - लमु मा वैन अयदीहिम् वमा खल्- फहुम् वला युहीतून विशेइम् - मिन् अिमिही इल्ला विमा शा - अ वसि अ कुर्सिय्युहुस् समावाति वल् - अर्ज़ . वला यऊदुहू हिफजुहमा वहुवल् अलिप्युल अज़ीम ०
तर्जुमा - अल्लाह ( वह है ) उसके सिवा कोई माबूद नहीं ज़िंदा है ( दुनिया के कारखाने को ) कायम रखने वाला है , न उसको ऊँघ आती है , न नींद । उसी का है , जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है , कौन है जो उसके हुक्म के बगेर उसकी जनाब में ( किसी की ) सिफारिश करे । जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है और लोग उसकी मालूमात में से किसी चीज़ पर एहाता नहीं कर सकते , मगर जितनी वह चाहे उसकी कुर्सी आसमानों और ज़मीन पर हावी है और उनकी हिफाज़त उसको थकाती नहीं और वह आलीशान बड़ाई वाला । है ।
Witr Ki Namaz वाजिब है और इसकी तीन रक्अतें हैं । इस नमाज का वक़्त इशा के फज़ों के बाद से पौ फटने तक है ।
Witr Ki Tisri Rakat में सूरह फातिहा और कोई सूरह पढ़ने के बाद ' अल्लाहु अक्बर ' कहकर हाथ कान की लबों तक उठाए और बाँध ले , फिर यह दुआ पढ़े , इसे Dua E Qunoot कहते हैं
अल्लाहुम्म इन्ना नस्तईनु - क व नस्तरा फ़िरु - क व नुअमिनु बि - क व न - त - वक् - कलु अलै - क व नुस्नी अलेकल खैर , व नश - कुरु क वला नक- फुरु - क व नख - लड़ व नत - रुकु मंय - यफ़ जुरु - क , अल्लाहुम्म इय्या - क नअब्दु व - ल - क नुसल्ली व नस्जुदु व इलैक नस् आ व नह - फ़िटु व नरजू रहम - त - क व नखशा अज़ा - ब - क इन् - न अज़ा - ब - क बिल कुफ़्फ़ारि मुल- हिक
तर्जुमा - ऐ अल्लाह ! हम तुझ से मदद चाहते हैं और तुझ से माफी मांगते हैं और तुझ पर ईमान लाते हैं और तुझ पर भरोसा रखते हैं और तेरी बहुत अच्छी तारीफ करते हैं और तेरा शुक्र करते हैं और तेरी ना- शुक्री नहीं करते और अलग करते हैं और छोड़ते हैं उस शख्स को जो तेरी नाफरमानी करे । ऐ अल्लाह ! हम तेरी ही इबादत करते हैं और तेरे ही लिए Namaz Padhte Hain, और सज्दा करते हैं और तेरी ही तरफ दौड़ते हैं और खिदमत के लिए हाज़िर होते हैं और तेरी रहमत के उम्मीदवार हैं और तेरे अज़ाब से डरते हैं । बेशक तेरा अज़ाब काफिरों को मिलने वाला है ।
सुभान अल्लाह (SubhanAllah) ( 33 बार ) ! पाक है अल्लाह ' )
अल्हम्दुलिल्लाह (Alhamdolillah) ( 33 बार ) - तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं ।)
अल्लाहु अक्बर (AllahU Akbar) ( 31 बार ) - अल्लाह बहुत बड़ा है । )
ला इला - ह इल्लल्लाह (Lailaha Illallah) ( एक बार ) - अल्लाह के अलावा कोई माबूद नहीं ।)